पीटीआई, पेइचिंग : चीनी मीडिया ने बुधवार को चेतावनी दी कि अगर भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान जापान के साथ मिलकर चीन को अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले का पालन करने के लिए कहता है तो उसे द्विपक्षीय व्यापार में भारी नुकसान उठाने पड़ सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने विवादित दक्षिण चीन सागर पर पेइचिंग के दावों को खारिज कर दिया था। सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में कहा गया, भारत को इस संभावना की जानकारी होनी चाहिए कि विवादों में उलझकर, वह अमेरिका की कठपुतली बन सकता है और उसे चीन की ओर से भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है, खासतौर पर इंडस्ट्री और बिजनेस के मामले में। अखबार ने मीडिया में आई उन खबरों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया था कि भारत इस हफ्ते मोदी की जापान यात्रा के दौरान संयुक्त बयान जारी करने के लिए तोक्यो का समर्थन मांग रहा है, जिसमें चीन से दक्षिण चीन सागर पर न्यायाधिकरण के फैसले का पालन करने के लिए कहा जा सकता है। लेख में कहा गया, भारत को यह समझना चाहिए कि दक्षिण चीन सागर के विवाद तनावों का चरम पार कर चुके हैं और कुछ शामिल पक्षों ने विवादों से निपटने के उन पुराने तरीकों पर विचार करना शुरू कर दिया है, जो सकारात्मक द्विपक्षीय वार्ताओं की इच्छा किए बिना विवाद पैदा करते हैं। लेख में कहा गया कि भारत दक्षिण चीन सागर में अपने रुख को इसलिए बढ़ावा देना चाहता है क्योंकि चीन ने एनएसजी में भारत की दावेदारी को रोक दिया था। लेख में कहा गया, दक्षिण चीन सागर में दावा नहीं करने वाला और बाहरी पक्ष होने के नाते भारत का इस क्षेत्र में कोई पारंपरिक प्रभाव नहीं है, इसलिए वह यहां होने वाली किसी भी गतिविधि पर अत्यधिक गौर कर रहा है क्योंकि उसने मोदी के कार्यभार संभालने के बाद से 'लुक ईस्ट' की विदेश नीति अपनाई है। इसमें कहा गया, ऐसा लगता है कि भारत ने क्षेत्र में अपने को कुछ ज्यादा ही अहम आंक लिया है। इस विवाद में चीन के बड़े प्रतिद्वंद्वी - अमेरिका और जापान भारत को अपने खेमे में खींचने की कोशिश कर रहे हैं, बहुत संभव है कि उसे कोई प्रतीकात्मक भूमिका ही मिले।
चीन ने भारत को दी चेतावनी
November 12, 2016
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पीटीआई, पेइचिंग : चीनी मीडिया ने बुधवार को चेतावनी दी कि अगर भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान जापान के साथ मिलकर चीन को अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले का पालन करने के लिए कहता है तो उसे द्विपक्षीय व्यापार में भारी नुकसान उठाने पड़ सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने विवादित दक्षिण चीन सागर पर पेइचिंग के दावों को खारिज कर दिया था। सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में कहा गया, भारत को इस संभावना की जानकारी होनी चाहिए कि विवादों में उलझकर, वह अमेरिका की कठपुतली बन सकता है और उसे चीन की ओर से भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है, खासतौर पर इंडस्ट्री और बिजनेस के मामले में। अखबार ने मीडिया में आई उन खबरों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया था कि भारत इस हफ्ते मोदी की जापान यात्रा के दौरान संयुक्त बयान जारी करने के लिए तोक्यो का समर्थन मांग रहा है, जिसमें चीन से दक्षिण चीन सागर पर न्यायाधिकरण के फैसले का पालन करने के लिए कहा जा सकता है। लेख में कहा गया, भारत को यह समझना चाहिए कि दक्षिण चीन सागर के विवाद तनावों का चरम पार कर चुके हैं और कुछ शामिल पक्षों ने विवादों से निपटने के उन पुराने तरीकों पर विचार करना शुरू कर दिया है, जो सकारात्मक द्विपक्षीय वार्ताओं की इच्छा किए बिना विवाद पैदा करते हैं। लेख में कहा गया कि भारत दक्षिण चीन सागर में अपने रुख को इसलिए बढ़ावा देना चाहता है क्योंकि चीन ने एनएसजी में भारत की दावेदारी को रोक दिया था। लेख में कहा गया, दक्षिण चीन सागर में दावा नहीं करने वाला और बाहरी पक्ष होने के नाते भारत का इस क्षेत्र में कोई पारंपरिक प्रभाव नहीं है, इसलिए वह यहां होने वाली किसी भी गतिविधि पर अत्यधिक गौर कर रहा है क्योंकि उसने मोदी के कार्यभार संभालने के बाद से 'लुक ईस्ट' की विदेश नीति अपनाई है। इसमें कहा गया, ऐसा लगता है कि भारत ने क्षेत्र में अपने को कुछ ज्यादा ही अहम आंक लिया है। इस विवाद में चीन के बड़े प्रतिद्वंद्वी - अमेरिका और जापान भारत को अपने खेमे में खींचने की कोशिश कर रहे हैं, बहुत संभव है कि उसे कोई प्रतीकात्मक भूमिका ही मिले।
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