चीन और भारत का रिश्ता विक्रम-बैताल की तरह का है. जब भी भारत कोई समस्या सुलझाता है चीन एक नई समस्या खड़ी कर देता है. और रहता भारत की पीठ पर ही है. पिछले पंद्रह सालों में भारत में दस हजार मौतों के जिम्मेदार मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने के लिए भारत हाथ-पैर मार रहा है. सारे देश तैयार हैं, पर चीन अपने वीटो पॉवर का इस्तेमाल कर के इसे रोक देता है. फिर भारत के न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में शामिल होने पर चीन ही अड़ंगा लगाता है.
इसके जवाब में भारत को एक नया हथियार मिला है. हालांकि हथियार पुराना ही है पर भारत ने कभी इसे इस्तेमाल नहीं किया था. साउथ चाइना सी . चीन, जापान, फिलीपींस से लेकर एकदम नीचे इंडोनेशिया, सिंगापुर तक फैला समंदर. जिस को चीन ऐतिहासिक रूप से अपना मानता है. पर इस बात को कोई और देश नहीं मानता. इस बात पर चीन का सबसे रगड़ा है. भारत अभी तक इसके बारे में बोलता नहीं था क्योंकि अपना काम करवाना था. पर चीन ने लगातार भारत के पक्ष को इग्नोर किया है. तो अब भारत के पास मौका है. और भारत ने मन भी बना लिया है.
चीन को इसके बारे में अंदाजा था, इसीलिए चीन के विदेश मंत्री अगस्त में ही मूव बना रहे थे. कहा था कि भारत को साउथ चाइना सी पर अपना रुख साफ करना चाहिए. पर भारत दम साधे बैठा था. हालांकि सारे देशों को इसमें शामिल करना और तैयार करना भारत के लिए समस्या है. क्योंकि हर कोई अपना काम शांति से करना चाहता है, कोई झगड़ा नहीं करना चाहता.भारत ने अभी सिंगापुर के सामने प्रस्ताव रखा कि दोनों मिल के ज्वाइंट स्टेटमेंट देते हैं. कि साउथ चाइना सी पर चीन की बपौती नहीं है. सिंगापुर के पीएम ली सिन लूंग से इस बारे में बात हुई थी. पर वापस लौटने के बाद लूंग ने अपनी असमर्थता बताई इस बारे में. क्योंकि सिंगापुर का बहुत ज्यादा नहीं फंस रहा है.
इस मुद्दे पर इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल परमानेंट कोर्ट ऑफ ऑर्बिट्रेशन ने चीन को लपेटा है. कि सच में ये सागर चीन का दालान नहीं है. पर चीन ने साफ-साफ ट्रिब्यूनल की बात को नकार दिया. कहा कि हम नहीं मानते किसी की रूलिंग को. ये लोग 80 प्रतिशत सागर को अपना मानते हैं. ये एरिया भारत के क्षेत्रफल के बराबर है.
भारत ने इस मामले में सीधा ना बोलकर ये जरूर कहा था कि हर इंटरनेशनल डिसीजन का सम्मान करना चाहिए. भारत ने इस मामले में सपोर्ट जुटाया भी है. जापान और वियतनाम के रूप में. दोनों के साथ ज्वाइंट स्टेटमेंट आ चुका है जिसमें साउथ चाइना सी का नाम है. अब संभावना है कि आगे कड़े स्टेटमेंट जारी होंगे.
पर चीन कहता है कि भारत चीन के पक्ष में है. क्योंकि मॉस्को में भारत ने एक बार चीन के सपोर्ट में कहा था कि भारत चीन के अधिकारों का सम्मान करता है. पर भारत ने ये नहीं कहा था कि चीन के हर कदम को भारत मान लेगा. अपनी कीमत पर भी.
इंडिया का 50 प्रतिशत ट्रेड इसी समुद्र से होता है. इसके अलावा वियतनाम के साथ मिलकर इस एरिया में गैस और तेल खोजने का प्लान है. भारत की नेवी बहुत उत्सुक है इस क्षेत्र में काम करने को लेकर. लेकिन अभी संभावना है कि अगर भारत शुरू करे तो चीन से झंझट अचानक बढ़ जाएगा. तो इस चीज को लेकर भारत काफी सधी रणनीति अपना रहा है.
ये लग सकता है कि भारत सिर्फ बातें कर रहा है. ज्वाइंट स्टेटमेंट दे रहा है. पर ऐसा नहीं है. बात कर देना अपना दावा रखने जैसा है. पहली चाल चल देने का फायदा रहता है. जैसे चीन ने सबसे पहले अपना दावा ठोंक के सबको परेशान कर दिया. तो भारत के पास भी तरीके हैं.
अपनी बात को बैक करने के लिए भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी भी है. भारत कह सकता है कि चीन के चलते हमारा व्यापार प्रभावित हो रहा है. भारत ने इस डिप्लोमेसी के अलावा अपनी मिलिटरी ताकत भी बढ़ा ली है. रूस के साथ मिलकर डेवलप किया हुआ ब्रम्होस मिसाइल वियतनाम को देने की बात हो रही है. फिलीपिंस को पैट्रोल क्राफ्ट और फ्रिगेट्स देने की बात हो रही है. साथ ही इंडोनेशिया के साथ मिलिटरी रिश्ते बढ़ाए जा रहे हैं. मंगोलिया, ऑस्ट्रेलिया सबसे ट्रेड-मिलिटरी रिश्ते जोड़े जा रहे हैं.
चीन एक स्कूली बच्चे की तरह व्यवहार करता है. साउथ चाइना सी में अपने जहाज भेज देता है. किसी और देश के जहाज के आने पर आपत्ति करता है. साथ ही भारत से ये सवाल पूछता है कि इंडियन ओशियन का नाम भारत के नाम पर क्यों है. वो तो भारत का नहीं है. ये लॉजिक किसी के पल्ले नहीं पड़ता. अपने सैनिकों को भारत के बॉर्डर में चरवाहों के रूप में भेज देता है. कभी अचानक से उनके सैनिक आ के भारत के सैनिकों को घेर लेते हैं. भारत ने बहुत सारी बदतमीजियों को बर्दाश्त किया है. इनमें वो भी है कि जब चीन के प्रेसिडेंट जिनपिंग इंडिया आए थे उसी वक्त चीनी सैनिकों ने चूमर में भारतीय सैनिकों को बंधक बना रखा था. किसी और देश के साथ ऐसा होता तो शायद युद्ध की नौबत आ जाती. पर भारत सब्र से काम लेता रहा.
भारत की नीति शुरू से यही रही है. क्योंकि भारत एक आक्रामक देश नहीं है. शांति से बात करना जानता है. पर अब भारत ने आक्रामक डिप्लोमेसी शुरू कर दी है. ये चीन को घेरने जैसा है. अमेरिका भी इस मामले पर इंडिया के साथ ही रहेगा. क्योंकि जापान, ऑस्ट्रेलिया अमेरिका के साथ हैं. साथ ही दुनिया में अमेरिका चीन को अपने से आगे निकलता नहीं देखना चाहता. दुनिया में दो पॉवर सेंटर भी नहीं चाहता.
भारत के पास ये मौका है कि वो अपनी कूटनीति को अपनी मिलिटरी से बैक कर सकता है. 1962 का वक्त नहीं है कि भारत की मिलिटरी तैयार नहीं है. चीन को ये बात पता है. अब ये खेल की तरह हो गया है. अपने स्नायु-तंत्र पर जिसका जितना नियंत्रण है, वो इस खेल में आगे रहेगा. इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में भारत इकॉनमी, मिलिटरी, साइंस, डिप्लोमेसी में किसी से पीछे नहीं है. तो अब खुल के अपनी चाल चल सकता है.