कुशल सत्यनारायण, बेंगलुरु
500 और 1000 के नोट बाजार से वापस लिए जाने का फैसला एक दिन में नहीं किया गया। महीनों की योजनाबद्ध तैयारियों के बाद ही इसे अंजाम दिया जा सका। जहां इस योजना के बारे में बेहद कम लोगों को जानकारी थी, वहीं इस काम को बेहद गुपचुप ढंग से पूरा किया गया। इसी के तहत एक चार्टर्ड प्लेन बिना किसी की नजर में आए बीते छह महीनों से मैसूर स्थित सरकारी प्रेस से 2000 के नए नोट दिल्ली स्थित रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुख्यालय पहुंचा रहा था।
चार्टर्ड प्लेन ने गुपचुप भरी उड़ानें
मैसूर से चार्टर्ड प्लेन की उड़ानें बेंगलुरु समेत कई बड़े शहरों के लिए थीं। खासतौर पर वे शहर जहां आरबीआई की शाखाएं हैं। मिशन था कि मैसूर के प्रिंटिंग प्रेस में छपे 2000 के नए करारे नोटों की गड्डियों को चुपचाप देश भर की आरबीआई की शाखाओं में पहुंचाया जाए। आरबीआई की शाखाएं भी सरकार की योजना को लागू करने के लिए खामोशी से तैयारियां कर रही थीं।
इस खास जगह छपे नोट
मैसूर में भारत रिजर्व बैंक नोट मुद्रण लिमिटेड द्वारा चलाया जा रहा करंसी प्रिटिंग प्रेस एक हाई सिक्यॉरिटी जोन है। यहां नोटों की छपाई का काम छह महीने पहले शुरू हुआ था। किसी को कानो कान खबर नहीं हुई कि क्या होने जा रहा है? इस जगह के लिए अलग से रेलवे लाइन और वॉटर सप्लाई पाइपलाइन है। यह प्रेस करीब दो दशक पुराना है। इसे दुनिया के बेहतरीन करेंसी प्रिंटिंग प्रेस में शुमार किया जाता है। 1000 के पुराने नोट भी यहीं पर छपे थे। इस प्रेस के अंदर ही करेंसी पेपर तैयार करने की यूनिट है। नोटों को बनाने में इस्तेमाल होने वाला खास कागज यहीं पर तैयार होता है।
सरकार ने चुकाई मोटी रकम
केंद्र सरकार ने मैसूर में नोटों के छपने के बाद आरबीआई की विभिन्न शाखाओं तक पहुंचाने के लिए एक प्राइवेट चार्टर्ड फ्लाइट ऑपरेटर की सेवाएं लीं। केंद्र सरकार ने इस कंपनी को 73 लाख 42 हजार रुपए का पेमेंट किया। यह रकम एसबीआई की एक शाखा में आरबीआई बेंगलुरु के एक अकाउंट से चुकाई गई। सरकार के ऐलान के बाद आरबीआई की शाखाओं से इस नई करेंसी को देश के विभिन्न बैंकों की शाखाओं में पहुंचाया गया। ऐसा करने के लिए हाई सिक्यॉरिटी वैन्स का इस्तेमाल किया गया। हर ब्रांच को उसके साइज के मुताबिक 20 लाख से लेकर दो करोड़ रुपए तक के 2 हजार के नोट दिए गए।
मैसूर एयरपोर्ट की भूमिका अहम
पूरी योजना के क्रियान्वयन में मैसूर एयरपोर्ट की बेहद अहम भूमिका रही। बीते कुछ सालों से मैसूर एयरपोर्ट उपेक्षाओं का शिकार रहा है। यहां एक सिंगल रनवे है। हालांकि, यह इकलौता रनवे पूरे देश को झकझोरने वाले नीतिगत फैसले को अमल में लाने का रास्ता बना। मंदाकली स्थित मैसूर एयरपोर्ट को काफी उम्मीदों के साथ बनाया और शुरू किया गया था। 35 हजार वर्ग फीट में फैले इस एयरपोर्ट को 82 करोड़ की लागत से एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने बनवाया था। इसका उद्घाटन तत्कालीन सीएम बीएस येदियुरप्पा के कार्यकाल में 2010 में हुआ था।
एयरपोर्ट प्रॉजेक्ट नहीं हुआ था कामयाब
शुरुआत में यहां से किंगफिशर एयरलाइंस और जेट एयरवेज की फ्लाइट्स चलती थीं। मैसूर में हर साल करीब 25 लाख टूरिस्ट आते हैं। इसके अलावा, 20 हजार कर्मचारियों वाला इन्फोसिस का कैंपस भी यहीं हैं। सरकार को उम्मीद थी कि मैसूर एयरपोर्ट पर फ्लाइट्स की आवाजाही बढ़ानी होगी, लेकिन यह प्रॉजेक्ट कामयाब नहीं हुआ। जेट और किंगफिशर ने कुछ सालों बाद यहां से ऑपरेशन बंद कर दिए। इसके बाद, इस एयरपोर्ट से प्लेन की आवाजाही करीब-करीब बंद हो गई।
500 और 1000 के नोट बाजार से वापस लिए जाने का फैसला एक दिन में नहीं किया गया। महीनों की योजनाबद्ध तैयारियों के बाद ही इसे अंजाम दिया जा सका। जहां इस योजना के बारे में बेहद कम लोगों को जानकारी थी, वहीं इस काम को बेहद गुपचुप ढंग से पूरा किया गया। इसी के तहत एक चार्टर्ड प्लेन बिना किसी की नजर में आए बीते छह महीनों से मैसूर स्थित सरकारी प्रेस से 2000 के नए नोट दिल्ली स्थित रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुख्यालय पहुंचा रहा था।
चार्टर्ड प्लेन ने गुपचुप भरी उड़ानें
मैसूर से चार्टर्ड प्लेन की उड़ानें बेंगलुरु समेत कई बड़े शहरों के लिए थीं। खासतौर पर वे शहर जहां आरबीआई की शाखाएं हैं। मिशन था कि मैसूर के प्रिंटिंग प्रेस में छपे 2000 के नए करारे नोटों की गड्डियों को चुपचाप देश भर की आरबीआई की शाखाओं में पहुंचाया जाए। आरबीआई की शाखाएं भी सरकार की योजना को लागू करने के लिए खामोशी से तैयारियां कर रही थीं।
इस खास जगह छपे नोट
मैसूर में भारत रिजर्व बैंक नोट मुद्रण लिमिटेड द्वारा चलाया जा रहा करंसी प्रिटिंग प्रेस एक हाई सिक्यॉरिटी जोन है। यहां नोटों की छपाई का काम छह महीने पहले शुरू हुआ था। किसी को कानो कान खबर नहीं हुई कि क्या होने जा रहा है? इस जगह के लिए अलग से रेलवे लाइन और वॉटर सप्लाई पाइपलाइन है। यह प्रेस करीब दो दशक पुराना है। इसे दुनिया के बेहतरीन करेंसी प्रिंटिंग प्रेस में शुमार किया जाता है। 1000 के पुराने नोट भी यहीं पर छपे थे। इस प्रेस के अंदर ही करेंसी पेपर तैयार करने की यूनिट है। नोटों को बनाने में इस्तेमाल होने वाला खास कागज यहीं पर तैयार होता है।
सरकार ने चुकाई मोटी रकम
केंद्र सरकार ने मैसूर में नोटों के छपने के बाद आरबीआई की विभिन्न शाखाओं तक पहुंचाने के लिए एक प्राइवेट चार्टर्ड फ्लाइट ऑपरेटर की सेवाएं लीं। केंद्र सरकार ने इस कंपनी को 73 लाख 42 हजार रुपए का पेमेंट किया। यह रकम एसबीआई की एक शाखा में आरबीआई बेंगलुरु के एक अकाउंट से चुकाई गई। सरकार के ऐलान के बाद आरबीआई की शाखाओं से इस नई करेंसी को देश के विभिन्न बैंकों की शाखाओं में पहुंचाया गया। ऐसा करने के लिए हाई सिक्यॉरिटी वैन्स का इस्तेमाल किया गया। हर ब्रांच को उसके साइज के मुताबिक 20 लाख से लेकर दो करोड़ रुपए तक के 2 हजार के नोट दिए गए।
मैसूर एयरपोर्ट की भूमिका अहम
पूरी योजना के क्रियान्वयन में मैसूर एयरपोर्ट की बेहद अहम भूमिका रही। बीते कुछ सालों से मैसूर एयरपोर्ट उपेक्षाओं का शिकार रहा है। यहां एक सिंगल रनवे है। हालांकि, यह इकलौता रनवे पूरे देश को झकझोरने वाले नीतिगत फैसले को अमल में लाने का रास्ता बना। मंदाकली स्थित मैसूर एयरपोर्ट को काफी उम्मीदों के साथ बनाया और शुरू किया गया था। 35 हजार वर्ग फीट में फैले इस एयरपोर्ट को 82 करोड़ की लागत से एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने बनवाया था। इसका उद्घाटन तत्कालीन सीएम बीएस येदियुरप्पा के कार्यकाल में 2010 में हुआ था।
एयरपोर्ट प्रॉजेक्ट नहीं हुआ था कामयाब
शुरुआत में यहां से किंगफिशर एयरलाइंस और जेट एयरवेज की फ्लाइट्स चलती थीं। मैसूर में हर साल करीब 25 लाख टूरिस्ट आते हैं। इसके अलावा, 20 हजार कर्मचारियों वाला इन्फोसिस का कैंपस भी यहीं हैं। सरकार को उम्मीद थी कि मैसूर एयरपोर्ट पर फ्लाइट्स की आवाजाही बढ़ानी होगी, लेकिन यह प्रॉजेक्ट कामयाब नहीं हुआ। जेट और किंगफिशर ने कुछ सालों बाद यहां से ऑपरेशन बंद कर दिए। इसके बाद, इस एयरपोर्ट से प्लेन की आवाजाही करीब-करीब बंद हो गई।