वाराणसी. हैंडी क्राफ्ट में नेशनल अवार्ड के लिए यूपी के वाराणसी के रहने वाले कुंजबिहारी का नाम सिलेक्ट हुआ है। कुंज को यह अवार्ड ढाई लाख रुपए से गोल्ड और सिल्वर का रिक्शा बनाने के लिए दिया जा रहा है। बता दें, 9 दिसंबर को राष्ट्रपति भवन में प्रणब मुखर्जी देश के 20 कलाकारों को उनके बेहतरीन आर्ट के लिए अवार्ड देंगे।
स्मृति ईरानी को गिफ्ट देना चाहता था कुंज, लेकिन...
- 16 अक्टूबर 2016 को वाराणसी में सांस्कृतिक संकुल में आर्ट गैलरी लगाई गई थी।
- 16 अक्टूबर 2016 को वाराणसी में सांस्कृतिक संकुल में आर्ट गैलरी लगाई गई थी।
- केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी यहां पहुंची और कुंज के बनाए रिक्शे को देखकर हैरान रह गईं।
- इस दौरान कुंज ने स्मृति ईरानी को एक कड़ा गिफ्ट करना चाहा।
- 16 हजार की कीमत का वह कड़ा चांदी से बना था।
- हालांकि, स्मृति ने गिफ्ट लेने से मना कर दिया और मुस्कुराते हुए कहा- मैं गिफ्ट नहीं लूंगी, अगली बार पैसे लेकर लाऊंगी तो जरूर लूंगी।
- इस दौरान कुंज ने स्मृति ईरानी को एक कड़ा गिफ्ट करना चाहा।
- 16 हजार की कीमत का वह कड़ा चांदी से बना था।
- हालांकि, स्मृति ने गिफ्ट लेने से मना कर दिया और मुस्कुराते हुए कहा- मैं गिफ्ट नहीं लूंगी, अगली बार पैसे लेकर लाऊंगी तो जरूर लूंगी।
ये है कुंज के बनाए रिक्शे की खासियत
- कुंज ने बताया, रिक्शा 4 महीने में बनकर तैयार हुआ है। वजन एक किलो 20 ग्राम है।
- कुंज ने बताया, रिक्शा 4 महीने में बनकर तैयार हुआ है। वजन एक किलो 20 ग्राम है।
- यह 1100 ग्राम सिल्वर और 4 ग्राम गोल्ड और अन्य कुछ मेटल से मिलकर बना है।
- रिक्शे का पैडल, सीट हूबहू बड़े रिक्शे की तरह है। हवा चलने पर पीछे का पर्दा हिलता नजर आएगा।
- इसकी लंबाई 2 फिट, चौड़ाई 10 इंच और ऊंचाई 1 फिट है।
- चंदन के ऑयल में स्वर्ण भष्म मिलाकर कलर तैयार किया गया है।
- 1200 डिग्री तापमान पर अलग-अलग सांचों को पकाया गया।
- हर पार्ट को अलग-अलग बनाया गया, बाद में सभी को असेम्बल किया गया।
- 400 साल पहले मुगलकाल में ये कला विकसित हुई थी।
- रिक्शे का पैडल, सीट हूबहू बड़े रिक्शे की तरह है। हवा चलने पर पीछे का पर्दा हिलता नजर आएगा।
- इसकी लंबाई 2 फिट, चौड़ाई 10 इंच और ऊंचाई 1 फिट है।
- चंदन के ऑयल में स्वर्ण भष्म मिलाकर कलर तैयार किया गया है।
- 1200 डिग्री तापमान पर अलग-अलग सांचों को पकाया गया।
- हर पार्ट को अलग-अलग बनाया गया, बाद में सभी को असेम्बल किया गया।
- 400 साल पहले मुगलकाल में ये कला विकसित हुई थी।