22 प्रतिशत कम हुआ भ्रष्टाचार,कर्नाटक सबसे भ्रष्ट राज्य: सर्वे

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नई दिल्ली-घूसखोरी और भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए सरकार की कोशिशें भले ही रंग लाती नजर आ रही हों लेकिन इसके बावजूद कर्नाटक देश के सबसे भ्रष्ट राज्यों की लिस्ट में सबसे ऊपर है। थिंकटैंक सीएमएस की 11 वीं रिपोर्ट बता रही है कि दस-बारह वर्ष पहले की तुलना में अब न केवल घूसखोरी में कमी आई है बल्कि भ्रष्टाचार भी कम हुआ है। 2005 के मुकाबले पुलिस, न्यायिक सेवाओं में घूसखोरी तेजी से घटी है। लेकिन सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार करने वाले राज्यों में कर्नाटक सबसे ऊपर और उसके बाद आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र का नाम है।
सीएमएस ने नोटबंदी के बाद इस साल जनवरी के दौरान 20 राज्यों में फोन पर एक सर्वे कराया। रिपोर्ट के मुताबिक, 2005 में जहां करीब 53 फीसदी परिवारों ने सार्वजनिक सेवाओं में पूरे साल में कम से कम एक बार भ्रष्टाचार से रूबरू होने की बात मानी थी, वहीं 2017 में ये संख्या घटकर 33 फीसदी रह गई। 2005 में जहां 73 फीसदी परिवारों का मानना था कि सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार बढ़ा।
2017 में ऐसी राय सिर्फ 43 फीसदी परिवारों की है। 20 राज्यों की 10 सार्वजनिक सेवाओं में जहां 2005 के दौरान करीब 20 हजार 5 सौ करोड़ रुपये बतौर घूस दिए गए, वही 2017 में ये रकम घटकर 6350 करोड़ रुपये रह गई। 2005 में जहां बिहार में 74 फीसदी, जम्मू-कश्मीर में 69 फीसदी, ओडिशा में 60 फीसदी, राजस्थान में 59 फीसदी और तमिलनाडु में 59 फीसदी परिवारों ने सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार की बात कही थी, वहीं 2017 में कर्नाटक में 77 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 74 फीसदी, तमिलनाडु में 68 फीसदी, महाराष्ट्र में 57 फीसदी, जम्मू-कश्मीर में 44 फीसदी और पंजाब में 42 फीसदी परिवारों ने सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार की बात मानी।
दिल्ली में करीब 49 फीसदी लोगों को लगता है कि बीते एक साल यानी 2016 से 2017 के दौरान यहां भ्रष्टाचार घटा है जबकि 25 फीसदी के मुताबिक इसमें बढ़त हुई है। दिलचस्प बात यह है कि 2005 में महज 6 फीसदी लोग ही बीते एक साल के दौरान भ्रष्टाचार घटने की बात मानते थे जबकि 73 फीसदी लोगों की राय इसमें बढ़ोतरी की थी।
सर्वे में 56 फीसदी लोगों ने कहा कि नोटबंदी की वजह से भ्रष्टाचार में कमी आई है जबकि 12 फीसदी की राय इससे उलट रही। 21 फीसदी की मुताबिक कोई बदलाव नहीं हुआ जबकि 11 फीसदी लोगों ने अपनी राय नहीं दी।
सीएमएस इंडिया करप्शन स्टडी के नतीजे 20 राज्यों के 3 हजार परिवारों के अनुभव के आधार पर हैं। ये अनुभव दस सार्वजनिक सेवाओं जैसे बिजली, राशन की दुकान, स्वास्थ्य सेवाएं, पुलिस, न्यायिक सेवाओं, पानी आदि पर आधारित हैं। वैसे रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि वर्ष चाहे 2005 हो या फिर 2017, घूस देने की वजहें कमोबेश समान ही हैं। मसलन, तय रकम नहीं चुकाना, काम जल्दी करवाना, जरूरी कागजात की कमी और सेवा देने वाले पर खासी निर्भरता इसमें शामिल है।

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