एडीजे श्रीवास की नाराजगी इस बात की भी है कि कई जजों को वर्षों एक ही जगह पदस्थ किया जा रहा है और कुछ जजों को बार-बार वही पदस्थ कर दिया जाता है जहा वो पूर्व में पदस्थ रहे है। अब एडीजे श्रीवास ने लड़ाई लड़ने का मन बना लिया है उनका कहना है अगर उनका ट्रांसफर निरस्त करने की मांग नही मानी गई तो वो 31 जुलाई या 01 अगस्त से जबलपुर हाईकोर्ट के बाहर ही धरने पर बैठ जाएगे। न्यायपालिका में अंदरूनी खींचतान तो काफ़ी समय से चलती आ रही है पर अब ये सार्वजनिक रूप से सामने आने लगी है । जिला और हाईकोर्ट में पदस्थ कुछ जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार व अन्य शिकायतों पर जाँच व करवाई वर्षों से लंबित है । वही कुछ के खिलाफ कम समय में ही निलंबन और बर्ख़ास्तगी जैसी करवाई भी कर दी गई है । जजों के चरित्र के मामले में भी कुछ शिकायतें जाँच में है। श्रीवास ने अपने आरोपों में उन चर्चाओं पर भी मोहर लगाई जिसमें न्यायपालिका में भाई-भतीजावाद होने की बात की जाती थी । श्रीवास का कहना है कि वो हाईकोर्ट के उन जजों के सामने अपनी बात व मांग लिखित में रख चुके है जिन्हें उनकी बात सुनने और मनाने का अधिकार है । पर उनकी उचित मांगो को नजर अंदाज कर वरिष्ठ जजों के जीद पर अड़े रहने का आरोप भी श्रीवास ने लगाया । फिलहाल 21 जुलाई को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा जिला कोर्ट के जजों के जारी ट्रांसफर आदेश में श्रीवास का ट्रांसफर जबलपुर से नीमच कर दिया गया है । श्रीवास का कहना है न्यायपालिका उन अफसरो को राहत देती है जिनके बच्चों की पढ़ाई के बीच में उनका ट्रांसफर कर दिया जाता है पर मेरे और मेरे बच्चों के साथ यह अन्याय बार-बार किया जा रहा है ,मेरे बच्चों ने एक क्लास की पढ़ाई दो शहरों में की है और फिर वही स्थिति बनाई गई है ।
तबादला नीति 2012 और उसके बाद निर्मित की गई स्थानांतरण नीति का उल्लंघन का आरोप लगाते हुए श्रीवास के द्वारा पूर्व में भी दिनांक 17/03/2016 को चीफ़ जस्टिस उच्च न्यायालय जबलपुर और दिनांक 06/04/2016 चीफ़ जस्टिस उच्च न्यायालय नई दिल्ली के समक्ष लिखित आवेदन व तथ्य रखने की बात कही । श्रीवास ने कहा कि उनके खिलाफ दिनांक 21/02/2017 को जिला जज से अभद्रता करने और अशोभनीय व्यवहार करने के आरोप भी झूठे लगाए है। श्रीवास ने कहा की हाईकोर्ट के द्वारा उनके समान प्रकरण में जारी अपने ही आदेशों का पालन नही कर रहा है तो हाईकोर्ट के द्वारा जारी आदेश रद्दी के समान लग रहे है । श्रीवास ने एक आरोप यह भी लगाया की दिनांक 01/08/2015 को जिला जज के लिए रिक्त पद निकाले और इसके लिए हाईकोर्ट ने दिनांक 12/09/2015 को लिखित में प्रमोशन परीक्षा आयोजित की जिसमें 27 परीक्षार्थी में एक वो भी शामिल हुए थे । प्रमोशन परीक्षा में वो व अन्य अभ्यर्थी उत्तीर्ण हुए किंतु पोस्टिंग नही दी गई । श्रीवास का आरोप है इस प्रकार परीक्षा आयोजित करने पर व्यय करना और परीक्षार्थी जजों का क़ीमती समय खराब किया गया। श्रीवास ने उनके साथ किए जा रहे व्यवहार को संविधान के अनुच्छेद 14 में निर्धारित मौलिक अधिकारो का हनन भी बताया । 15 माह की अवधि में श्रीवास का चौथा ट्रांसफर आदेश जारी होने से वो दुखी और परेशान है श्रीवास का परिवार और बच्चे भी इसे प्रताड़ना मान कर झेल रहे है। 15 माह में श्रीवास को धार से शहडोल , शहडोल से सिहोरा, सिहोरा से जबलपुर और अब जबलपुर से नीमच भेजा गया है। श्रीवास ने बताया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2008 और 2013 में आदेश जारी कर न्यायिक कर्मचारियों की वार्षिक गोपनीय चरित्रावली उन्हें देने का आदेश दिया है किंतु उनके द्वारा एक से अधिक बार लिखित आवेदन देने के बाद भी उन्हें उनकी वार्षिक गोपनीय चरित्रावली की प्रतियां नही दी जा रही है । श्रीवास ने कहा इस मामले में मेरे ख़िलाफ साजिश रची जाना प्रतीत हो रहा है और धृष्टता की जा रही है । इन सब परेशानियों से दुखी होकर श्रीवास खुलकर लड़ाई लड़ना चाहते है और 31 जुलाई या 01 अगस्त से जबलपुर हाईकोर्ट के बाहर धरने पर बैठने की तैयारी में है । अगर ऐसा हुआ तो यह न्यायपालिका का ऐसा पहला प्रकरण होगा जिसमें न्याय देने वाला जज खुद न्याय पाने के लिए आंदोलन की राह पकड़ ले ,हालाकि इसकी शुरुआत श्रीवास ने 5 पेज का लिखित प्रेस नोट जारी कर दिनांक 29 जुलाई से कर भी दी है । अपने आंदोलन के लिए श्रीवास ने सुभाषचंद्र बोस के कथन " सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझोता करना " गांधी जी का कथन " अन्याय करना पाप है तथा अन्याय सहन करना उससे भी बड़ा पाप है और भगतसिंह के कथन " क़ानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक वो लोगों की इच्छा अभिव्यक्ति करे " का सहारा लेकर इनको ही लड़ाई का मूल मंत्र बनाया है ।