क्या कलानीराज का हो गया राजनीतिक अंत
उल्हासनगर- उल्हासनगर की राजनीति पिछले कई दशकों से कभी बहरानी तो कभी कालानी परिवार के इर्द-गिर्द रही है| पप्पू कालानी जब ८० के दशक में बहरानी के आशीर्वाद से राजनीति में आए तो राजनीति की दशा ही बदल दी| पप्पू कालानी जल्द ही आम जनता के लाडले नेता बन गए| क्या सिंधी समाज, क्या मराठा-मुस्लिम सबके चहेते बन गए| जल्द ही कालानी की तूती महाराष्ट्र में ही नहीं देश-विदेश में बोलने लगी| कालानी की राजनीति कहो या दहशत, विरोधी भी उसका सामना तक करने से कतराते थे| जनाधार साथ होने की वजह से कई तरह के विकास का काम कलानी ने शहर के लिए किए तो कई तरह के असामाजिक तत्वों को भी शहर से दूर कर दिया| यही वजह थी कि सिंधी समाज ने भी कालानी को दिल खोलकर समर्थन दिया| तभी कालानी पहले शहराध्यक्ष फिर कई बार आमदार भी बने| यही नहीं ९० के दशक में कई संगीन गुनाह के चलते उनको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया| तो भी कालानी लगातार जेल में रह कर दो बार रिकॉडेड मतों से विजयी हुए और इतिहास रचा| इस जीत के पीछे हमेशा सिंधी समुदाय के व्यापारीगण, आम घोरगरीब परिवार और पिछड़े समुदाय का भी अहम रोल था| इसी वजह से कालानी देश- विदेश में सिंधी नेता के रुप में लाल कृष्ण आडवाणी के बाद दूसरे स्तर से बढ़े नेता के रुप में प्रसिद्ध हुए और रहेंगे भी| कालानी ९० के दशक में हुए बठीजा बंधुओं की हत्या के चलते कई सालों से फिर से जेल में हैं और जेल जाने के बाद उसकी विरासत उसके बेटे ओमी कलानी ने बाखूबी संभाली और पिछले विधानसभा में मोदी लहर के बावजूद उल्हासनगर की विधानसभा सीट पर अपनी मां आयरन लेडी की नाम से विख्यात ज्योती कालानी को जीत दर्ज करवाकर विधानसभा भेजा| वहीं ज्योती कालानी ने भी शहर के कई ज्वलंत मुद्दे बाखूबी विधानसभा में जम कर उठाए और महाराष्ट्र सरकार का इन मामलों में ध्यान आकर्षित करवाया| इसी वजह से कालानी परिवार की प्रसिद्धी फिर से उफान पर आने लगी| जिसका नतिजा २०१७ के स्थानिय आम चुनाव में देखने को मिला, जहां एक ओर भाजपा-शिवसेना को बात-बात पर ठेंगा दिखाकर लोकसभा और राज्यसभा में समर्थन भी लेकर राज कर रही थी, तो स्थानिय निकाय चुनाव में सत्ता पर काबिज होने के लिए कई जगहों पर अकेले चुनाव ल़ड़ी| वहीं उल्हानगर मनपा चुनाव में भी सेना से दूर जाकर सेना के विरोध में लड़ा जहां भाजपा को कालानी समर्थन से सत्ता मिली और ओमी कालानी की पत्नी को महापौर पद मिला| मगर कालानी परिवार को भाजपा से गठबंधन करने पर कई लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ी तो कई भाजपा नेताओं के आखों की किरकीरी बने| बड़ी मुश्किल और राजनीतिक दबाब की वजह से महापौर की कुर्सी मिली थी वो भी एक साल के लिए| सूत्रों की माने तो भाजपा नेताओं ने कालानी परिवार के जनाधार को तोड़ने के लिए ओमी कालानी का समर्थन मांगा था| यहीं नहीं ओमी कालानी को आनेवाली विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ाकर विधानसभा भेजने का लॉलीपॉप दिया गया था, मगर टिकट देना तो दूर की बात कुछ महिने में ही उनकी पत्नी पंचम कालानी को ही मनपा से बाहर का दरवाजा दिखाया जाएगा| कोई जमाना था कि पप्पू कालानी जिस रास्ते से गुजरते थे तो रास्ते से आम लोग कहो, या अतिविशेष कहो सब उनकी झलक देखकर रूक से जाते थे| मगर अब ऐसा जमाना आ गया है कि कालानी के इस चश्म चिराग से खास कर सिंधी समाज ही दूर भागता नजर आ रहा है| किसी जमाने में पप्पू कालानी अपक्ष चुनाव लड़कर जीत आए थे मगर अब जो सूरते हाल है, उसके चलते नहीं लगता कि ओमी कालानी को किसी राष्ट्रीय पार्टी का टिकट भी जिता नहीं पाएगा| क्योंकि कालानी परिवार पर खास कर जो सिंधी समाज गहरी आस्था रखता था, आज दूर होता दिख रहा है| इसका नतीजा हमको कई आम चुनाओं में देखने को मिला| जहां अपनी साख को दांव पर रखकर ओमी कालानी ने भाजपा से झगड़कर उप चुनाव में अपने करीबियों को उतारा जो नहीं जीत पाए| चाहे उल्हासनगर-५ में हुए उप चुनाव में उसके विरोधी रहे गंगोत्री ने कालानी को बड़ी शिकस्त देकर अपने चहेते को चुनाव जिताने में कामयाब रहे| तो अभी पैनल नं.१ में उपचुनाव में रिपाई आठवले गुट के दबंग नेता के नाम से मशहूर नगरसेवक व आठवले पक्ष उल्हासनगर जिलाध्यक्ष भगवान भालेराव जो ओमी कालानी के राजनीतिक प्रबल शत्रु के नाम से विख्यात हैं, उन्होंने उपचुनाव में भाजपा और कालानी समर्थक उम्मीदवार को कड़ी शिकस्त देकर चुनाव में अपने उम्मीदवार को अच्छी खासी जीत दिलवाई|
वहीं इस हार से कालानी परिवार की इज्जत पर उंगली उठती दिख रही है| वहीं भालेराव आनेवाले विधानसभा चुनाव में कालानी को कड़ी चुनौती के रूप में दिखने लगे हैं, क्योंकि भालेराव स्वभाव से अति मिलनसार होने के साथ-साथ कुछ सालों से सिंधी समाज के बहुत करीबी होते जा रहे हैं| यही वजह है कि एक अलग समाज से आने के बाद भी आज वो हर समाज के लोगों से कंधा मिला कर चलते देखे गए हैं| कालानी की यह हार ऐसे ही नहीं हुई| ओमी कालानी की यह हार हुई उनके चापलूसी करनेवाले चमचों की वजह से| कई बुद्धजीवियों की माने तो कई विशेष वर्ग जो पप्पू कालानी को मसीहा मानते थे वो भी आज ओमी कालानी से दूर होते जा रहे हैं| वजह यह है कि ओमी को ना कोई अच्छा बुरा समझानेवाला है और नाही कोई राजनीतिक गुरु जो उनको राजनीति का पाठ पढ़ा या समझा सके| कुछ चमचों की वजह से आज सिंधी समाज हो या व्यापारी वर्ग वो दूर जाता दिख रहा है| कारण उसका कुछ भी हो मगर प्रमुख कारण यह बताया जाता है कि ओमी कालानी को आज भी लोग पप्पू कालानी के बेटे के रुप में जानते है| मगर कुछ चमचों जिनकी छवि एंटी सिंधी है उनके कहने पर टीम ओमी कालानी बनाकर ओमी को पप्पू कालानी के शुभचिंतकों से दूर कर दिया| इन्होंने अपने लालच के चलते समाज से दूर कर दिया है| ओमी कालानी को आत्ममंथन करना चाहिए कि जो व्यापारी पप्पू कालानी के एक आवाज पर लड़ने मरने यहां तक कि जेल में रहते हुए उनको जिता सकते हैं, वो अब कालानी परिवार से एक-एक कर दूर क्यों जा रहे हैं|
ओमी कालानी को यहा सोचना चाहिए कि जिनको दस हजार की नौकरी पर कोई ना रखे उनको लाखों की कारें और लाखों के घर कहां से आए| कालानी को यह भी सोचना चाहिए कि जिस परिवार का मुखिया एक शेर के रुप में रहकर शहर की रक्षा की, उस शहर में ऐसे कौन से दुश्मन पैदा हो गए, जो उनके खिलाफ इतनी साजिशें रच रहे हैं, जो उनके लोगों को झूठे केसों में फंसाने का डर लगा रहता है| कालानी को यह भी सोचना चाहिए कि एक और भगवान भालेराव दूसरे समाज से आते हुए भी सिंधी समाज के हर युवा, बुजूर्ग सहित हर व्यापारियों से कैसे कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है| कालानी को यह भी सोचना जरुर पड़ेगा, क्योंकि आज भी सिंधी समाज की नजर ओमी पर ही है| आज भी पप्पू की छवि ओमी में दिखती है| मगर आज ओमी ने मंथन नहीं किया तो आने वाले वक्त में कालानी परिवार राजनीति का हिस्सा नहीं बल्कि एक इतिहास बनकर रह जाएगा| ओमी को चाहिए कि वो जनाधार की जुबान को और कालानी शुभचिंतकों की ना कही जुबान को समझें और कुछ मौका परस्त चमचों को बाहर का रास्ता दिखाएं और पुराने साथियों को मनाने में जुट जाएं, तभी शहर का भला होगा| ओमी कालानी को यह भी समझना चाहिए कि यही वो रिपाई गुट है जिन्होंने पप्पू कालानी को चुनाव जिताया था| अगर सिंधी समाज और रिपाई एक साथ आ गए तो भालेराव अगले आमदार जरूर चुनकर आएंगे|