इस समय मुंबई (Mumbai) किसकी है इस विषय पर काफी बहस हो रही है. कंगना रनौत (Kangana Ranaut) और शिवसेना नेता संजय राउत (Sanjay Raut) के बीच की तीखी बायानबाजी हो या फिर सुशांत के मौत से उपजे अन्य विवाद इन सब मामलों ने मुंबई किसकी है जैसी बहस तो पैदा कर दी, लेकिन यह जानने के लिए मुंबई का इतिहास (History of Mumbai) देखा जाए तो एक अलग ही दिलचस्प कहानी बनती है.
प्रागैतिहासिक काल से नाता
मुंबई की भूआकृति उसे एक प्राकृतिक बंदरगाह बनाती है जिसकी वजह से दुनिया की भारतीय प्रायदीप में यह आवाजाही का जरिया बना. लेकिन मुंबई की ऐतिहासिक दास्तां की यह केवल एक वजह है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक इस जगह पर लोगों की बसाहट प्रागैतिहासिक काल से है. इस बात का प्रमाण साल 1930 में कोलोबा के समुद्र तट पर 25 लाख लाख साल पुराने पत्थर मिले थे, जिनका उपयोग उस समय के इंसान हथियारों के तौर पर करते थे. इन पत्थरों का जिक्र नरेश फर्नांडीस की किताब 'सिटी एड्रिप्ट' में है. इसके अलावा यह भी माना जाता है कि मुंबई में सबसे पहले रहने वाले मछुआरे वहां पुराने दौर के गुजरात से आए थे और वे अपने साथ मुंबई की पहली देवी मुंबा देवी को साथ लेकर आए थे.
प्राचीन भारत में मुंबई
वैसे तो मुंबई ऐतिहासिक बदलावों के कई दौरों से गुजरा है,लकिन इसके इतिहास को प्रचीन भारतीय इतिहास से लेकर अब तक के समय के बीच चार हिस्सों में बांटा गया है. रिपोर्ट के मुताबिक 250 ईसा पूर्व में मौर्यवंस के शासक कोंकण पहुंचे जिसके बाद से मुंबई पर कई शासकों का शासन कायम रहा. मौर्य के बाद सातवाहन का यहां प्रभाव रहा जिनके बाद क्षत्रप वंश राष्ट्रकूट, यादव और शिलहार वंश का यहां राज रहा, लेकिन मुंबई पर व्यापार करने वालों का प्रभाव ज्यादा रहा जिसकी वजह मुंबई के आसपास के इलाकों के बंदरगाह हैं.
कंगना रनौत (kangna Ranaut) और संजय राउत (Sanjay Raut) के बीच बयानबाजी ने मंबई किसकी जैसा सवाल खड़ा किया था.
मुस्लिम और पुर्तगालियों का समय
13वीं से 15वीं सदी में गुजरात के सुल्तान का मुंबई पर प्रभुत्व रहा जिसके बाद 1534 में मुंबई पुर्तगालियों के हाथ चला गया. पुर्तगालियों ने मुंबई को अपनी नौसेना का केंद्र बना लिया था, इसके बाद जल्दी ही मुंबई अंग्रेजों की नजर में आ गया और उन्होंने मुंबई हासिल करने की कई कोशिशें शुरू कर दीं. 23 जून साल 1961 को इंग्लैंड के महाराजा चार्ल्स द्वितीय और पुर्तगाली राजकुमारी कैथरील के विवाह के मौके पर पुर्तगालियों ने मुंबई अंग्रेजों को तोहफे में दे दी.
अंग्रेजी हुकूमत
अंग्रेजों के जमाने में ही मुंबई की व्यापारिक अहमियत बहुत बढ़ी उन्होंने अपना व्यापार सूरत की जगह से मुंबई से करने को तरजीह दी. 18वीं सदी में अंग्रेजों का पुर्तगालों से नाता टूटने के बाद मुंबई में तरक्की का दौर आया. तभी मराठों की बढ़ती ताकत के साथ अंग्रेजों को मुंबई खोने का डर सताने लगा. जब मराठे वसई तक आने के बाद मुंबई की ओर बढ़ने लगे तो अंग्रेजों ने मराठों से समझौता कर लिया लेकिन अंग्रेज इससे संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने मुंबई के किले के चारों ओर खाई बनावाई जिसमें करीब ढाई लाख रूपये खर्चा आया था और इसमें मुंबई के व्यापारियों ने भी पैसा दिया था. 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठाओं की हार के बाद अंग्रेजों को मुंबई के मामले में तसल्ली हो सकी.
एक्ट्रेस कंगना रनौत (kangna Ranaut) और महाराष्ट्र सरकार के बीच विवाद गहरा हो गया था..
19वीं सदी में
19वीं सदी में मराठा शासन खत्म होने के बाद मुंबई का अलग तरह से विकास शुरू हुआ. मुंबई न्यायपालिका, राजस्व व्यवस्था के साथ शिक्षा का भी केंद्र बनने लगा. 1853 में रेलवे की शुरुआत से एक अलग दिशा मिली. 1857 के बाद मुंबई यूनिवर्सिटी के स्थापना हुई और इसके बाद र में मुंबई नगरनिगम की भी. इसी दौर में मुंबई में बहुत सी इमारतों का निर्माण हुआ. 20वीं सदी में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में मुंबई को बहुत अहमियत मिली. पहले फिरोजशाह मेहता फिर लोकमान्य तिलक की वजह के मुंबई बहुत सी गतिविधियों का केंद्र रहा.
आजादी के बाद
आजादी केबाद 1956 में एक नया मुंबई राज्य बना जिसमें कच्छ और सौराष्ट्र के इलाके शामिल थे. लेकिन 1960 में भाषा के आधार पर फिर से इलाके का पुनर्गठन हुआ और महाराष्ट्र और गुजरात बनने के बाद मुंबी महाराष्ट्र की राजधानी बनी. व्यापाकरिक अहमियत बढ़ते रहने से और आयात निर्यात का प्रमुख केंद्र होने से मुंबई का विकास हमेशा ही चरम पर रहा और जल्दी ही यह आधिकतम शहरों में बदल गया, विभिन्न प्रांतों के लोग यहां आते रहे जिससे मुंबई ने अपनी एक अलग ही संस्कृति बना ली.