कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने सोमवार को CM पद से इस्तीफा दे दिया। राज्य में आज ही भाजपा सरकार के दो साल पूरे हुए हैं। इसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे येदियुरप्पा ने इस्तीफे का ऐलान किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि मैं हमेशा अग्निपरीक्षा से गुजरा हूं। कुछ ही देर बाद उन्होंने राजभवन पहुंचकर गवर्नर को इस्तीफा सौंप दिया। उनका इस्तीफा मंजूर भी कर लिया गया है। हालांकि, नए मुख्यमंत्री के ऐलान तक वे कार्यकारी मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
इसके बाद उन्होंने कहा कि उन पर हाईकमान का कोई प्रेशर नहीं है। मैंने खुद इस्तीफा दिया। मैंने किसी नाम को नहीं सुझाया है। पार्टी को मजबूत करने के लिए काम करूंगा। कर्नाटक की जनता की सेवा का मौका देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का शुक्रिया।
4 बार मुख्यमंत्री रहे, कभी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए
येदियुरप्पा सबसे पहले 12 नवंबर 2007 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने, लेकिन महज सात दिन बाद 19 नवंबर 2007 को ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद 30 मई 2008 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के चलते इस बार 4 अगस्त 2011 को इस्तीफा दिया। तीसरी बार 17 मई 2018 को मुख्यमंत्री बने और फिर महज छह दिन बाद 23 मई 2018 को इस्तीफा हो गया। चौथी बार 26 जुलाई 2019 को मंख्यमंत्री बने और ठीक दो साल बाद इस्तीफा दे दिया।लिंगायत समुदाय पर मजबूत पकड़
कर्नाटक में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं और येदियुरप्पा की लिंगायत समुदाय पर मजबूत पकड़ है। ऐसे में उनके इस्तीफे के बाद भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस समुदाय को साधने की होगी। बीते दिन ही विभिन्न लिंगायत मठों के 100 से अधिक संतों ने येदियुरप्पा से मुलाकात कर उन्हें समर्थन की पेशकश की थी। संतों ने भाजपा को चेतावनी दी थी कि अगर उन्हें हटाया गया, तो परिणाम भुगतने होंगे।कर्नाटक में लिंगायत प्रभाव 100 विधानसभा सीटों पर
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय 17% के आसपास है। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 90-100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का असर है। राज्य की तकरीबन आधी आबादी पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। ऐसे में भाजपा के लिए येदि को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा। ऐसा होने का मतलब इस समुदाय के वोटों को खोना होगनए मुख्यमंत्री के दावेदारों में कौन-कौन?
येदियुरप्पा की जगह लिंगायत समुदाय से ही आने वाले किसी और मंत्री या विधायक को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा भी किया गया है कि भाजपा इस बार गैर-लिंगायत पर दांव खेल सकती है।- फिलहाल अगले मुख्यमंत्री के तौर पर जिन नामों की चर्चा है, उनमें पहला नाम है बसवराज बोम्मई का। बोम्मई जो लिंगायत समुदाय से आते हैं और कर्नाटक सरकार में गृह मंत्री होने के साथ-साथ संसदीय कार्य मंत्री और कानून मंत्री भी हैं।
- भाजपा हाईकमान विश्वेश्वरा हेगड़े कगेरी के नाम पर भी विचार कर रही है। कगेरी कर्नाटक का ब्राह्मण चेहरा हैं और फिलहाल कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष हैं।
- राज्य के खनन मंत्री एमआर निरानी को भी नए मुख्यमंत्री का मजबूत दावेदार बताया जा रहा है। ये भी लिंगायत समुदाय से आते हैं। निरानी पार्टी हाईकमान से मुलाकात के लिए रविवार शाम दिल्ली पहुंचे थे।
- इसके अलावा केंद्रीय कोयला खनन मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी का भी नाम सामने आया है।
दिल्ली में भी शुरू हुई हलचल
येदियुरप्पा के इस्तीफे के ऐलान के बाद दिल्ली में भी हलचल तेज हो गई है। इस बीच भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कर्नाटक प्रभारी अरुण सिंह से बात की है। माना जा रहा है कि जल्द ही ऑब्जर्वर के नाम का ऐलान हो सकता है, जिसके बाद मुख्यमंत्री चुना जाएगा।केंद्रीय कैबिनेट के विस्तार के बाद से इस्तीफे की अटकलें थीं
- येदियुरप्पा के इस्तीफे की अटकलें केंद्रीय कैबिनेट के विस्तार के बाद से ही लगाई जाने लगी थीं। दरअसल, येदियुरप्पा के कैम्प में सक्रिय सांसद शोभा करंदलाजे को मोदी कैबिनेट में शामिल किया गया। माना जा रहा है कि इस्तीफे के लिए येदि ने पार्टी हाईकमान के सामने जो शर्त रखी थी, उनमें से एक ये भी थी।
- इसके बाद येदियुरप्पा ने 16 जुलाई को दिल्ली पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। अचानक हुई इस मुलाकात ने येदियुरप्पा के इस्तीफे की अटकलों को और हवा दे दी। इसके बाद उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की थी।
भाजपा के लिए येदियुरप्पा का सपोर्ट जरूरी क्यों?
- येदि लिंगायत जाति के कद्दावर नेता हैं। वे कर्नाटक की राजनीति के धुरंधर हैं। फिलहाल उनके कद का नेता कांग्रेस या अन्य किसी पार्टी के पास भी नहीं है।
- लिहाजा अगर भाजपा उन्हें पद से हटाकर किसी और को मुख्यमंत्री बनाती है तो भी येदियुरप्पा के समर्थन की जरूरत होगी।
- कर्नाटक में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगर येदियुरप्पा भाजपा से कन्नी काटते हैं, तो राज्य में इसका नुकसान भी भाजपा को उठाना पड़ सकता है।
येदियुरप्पा पहले दिखा चुके हैं अपनी राजनीतिक हैसियत
येदियुरप्पा ने 31 जुलाई 2011 को भाजपा से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने 30 नवंबर 2012 को कर्नाटक जनता पक्ष नाम से अपनी पार्टी बनाई थी। दरअसल, येदियुरप्पा के इस कदम के पीछे लोकायुक्त द्वारा अवैध खनन मामले की जांच थी। इसी जांच में येदियुरप्पा का नाम सामने आया था। इसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा था। 2014 में येदियुरप्पा फिर भाजपा में शामिल हो गए।2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत के जादुई आंकड़े को छूने से चूक गई। इसके बाद भी येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से इमोशनल स्पीच के बाद सत्ता छोड़ दी। इसके बाद कांग्रेस ने जेडी (एस) के साथ मिलकर सरकार बनाई। यह सरकार भी ज्यादा दिन नहीं टिकी और 2019 में येदियुरप्पा दोबारा मुख्यमंत्री बने।